Fasal Jankari

राई की उन्नत खेती से कमा सकते है लाखो रूपये का मुनाफा, जानिए राई की खेती की पूरी तकनीक

राई की फसल तिलहन की प्रमुख फसल है, तिलहन की फसल में तोरिया सरसों और राई का प्रमुख स्थान रहा है। राई का हम दो तरीके से उपयोग कर सकते हैं। राई की फसल से निकलने वाले खाद्य तेल को भोजन बनाने के लिए उपयोग में लिया जाता है। और राई की खली को जानवरों के चारे के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। राई की फसल में अधिक पैदावार एवं उच्च गुणवत्ता प्राप्त करने के लिए वैज्ञानिक तरीका अपनाकर अधिक लाभ प्राप्त कर सकते हैं। राई के तेल की रेट ज्यादा इसलिए रहती है क्योंकि राई के तेल को लगभग सभी प्रकार से इस्तेमाल किया जाता है एवं राई के तेल को सभी घरों में इस्तेमाल किया जाता है। राई की फसल लगभग सभी प्रकार की मिट्टियों में की जा सकती हैं। राई की फसल रेतीली मिट्टी से लेकर दोमट मिट्टी में तक की जा सकती है। राई की फसल हुबहू सरसों की फसल की तरह की जाती है। राई की खेती करने के लिए सबसे पहले यह जान ले कि की खेती किस प्रकार की जाती है?

आइए जानते हैं कि, राई की फसल के लिए खेत की तैयारी किस तरह से करें?,राई की फसल के लिए उन्नत किस्में कौन-कौन सी है?,राई की फसल के लिए उपयुक्त मौसम एवं जलवायु कैसी होनी चाहिए?,राई की फसल के लिए बीज किस प्रकार के होने चाहिए?,राई की फसल में बीजों की बुवाई किस तरह से की जानी चाहिए?,राई की फसल में सिंचाई किस तरह से करें?,राई की फसल में निराई गुड़ाई का कार्य कैसे करें?,राई की फसल में खाद एवं उर्वरक किस मात्रा में एवं कितना डालना चाहिए?,राई की फसल में होने वाले रोग एवं उनके रोकथाम के उपाय क्या है?,राई की फसल में कटाई किस तरह से करें?,राई की फसल का इतिहास क्या है? एवं राई की फसल भारत के अंदर सबसे ज्यादा कौन से राज्य में की जाती है? आदि

यदि आप भी इन सभी चीजों के बारे में जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं तो हमारी पोस्ट को पूरा अवश्य पढ़ें।।

राई की खेती के लिए खेत की तैयारी (Rai ki Kheti ke liye khet ke taiyari)

  • राई की खेती करने के लिए सबसे पहले एक समतल भूमि वाला वाला खेत फसल करने के लिए तैयार कर लेना है।
  • खेत के अंदर सामान्य हल से दो या तीन बार अच्छी तरह से जुताई कर देनी हैं
  • अगर सामान्य हल से जुताई नहीं कर पा रहे हैं तो खेत के अंदर कल्टीवेटर के द्वारा दो से तीन बार जुताई कर देनी है।
  • प्रत्येक जुताई के बाद सुहागा फेर देना है। जुताई पूर्ण हो जाने के बाद कुछ दिनों बाद राई की फसल की बुवाई कर देनी है।

राई की फसल में बोई जाने वाली उन्नत किस्में (Rai ki fasal mein boi jaane wali unnat kismen)

  1. वरुण :- राई कि यह किस्म 135 से 140 दिन के अंदर पक कर तैयार हो जाती है इस किस्म के अंदर प्रति हेक्टेयर की दर से 20 से 22 क्विंटल राई का उत्पादन आसानी से हो जाता है । इस किस्म के अंतर्गत 42% तेल का उत्पादन प्राप्त हो जाता है ‌।
  2. पूसा बोल्ड :- राई की यह किस्म 120 से 140 दिन के अंदर पक्कर तैयार हो जाती है । इस किस्म के अंदर प्रति हैक्टर की दर से 18 से 20 क्विंटल राई का उत्पादन आसानी से हो जाता है । इस किस्म के अंतर्गत 42% तेल का उत्पादन प्राप्त होता है।
  3. क्रांति :- राई की एक किस्म 125 से 130 दिन के अंदर पक्कर तैयार हो जाती है इस किस्मों में प्रति हेक्टर की दर से 20 से 22 क्विंटल राई का उत्पादन आसानी से प्राप्त हो जाता है और इस किस्म के अंदर 40% तेल का उत्पादन हो जाता है।
  4. राजेंद्र राई पिछेती :- राई की यह किस्म 105 से 120 दिन के अंदर पक्कर तैयार हो जाती है । इस किस्म के अंतर्गत लगभग 15 से 18 क्वीटल प्रति हेक्टेयर की दर से राई का उत्पादन हो जाता है । इसके अंदर प्रति हेक्टेयर की दर से 41% तेल का उत्पादन प्राप्त हो जाता है।
  5. राजेंद्र अनुकूल :- राई की यह किस्म 110 से 115 दिन के अंदर पक कर तैयार हो जाती है I इस किस्म के अंतर्गत लगभग 10 से 13 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से राई का उत्पादन हो जाता है। इस किस्म के अंतर्गत 40% तेल का उत्पादन हो जाता है।
  6. राजेंद्र सुफलाम :- राई कि यह किस्म 105 से 115 दिन के अंदर पक्कर तैयार हो जाती है और किस किस्म के अंतर्गत लगभग 12 से 15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से राई का उत्पादन हो जाता है। इस किस्म के अंतर्गत 40% तेल का उत्पादन वह जाता है

राई की खेती में मौसम एवं जलवायु

राई की खेती करने के लिए ठंडी जलवायु की आवश्यकता होती है। राई की फसल रबी की फसल है. इसलिए यह शीत ऋतु में ही की जाती हैं। राई की खेती के लिए दोमट मिट्टी एवं कछारी मिट्टी उपयुक्त मानी जाती है।

राई की खेती में बीजों की बुवाई करना

राई की खेती में बीजों की बुवाई का कार्य बड़ी सावधानी पूर्वक करना चाहिए, क्योंकि बुवाई सही करने पर ही फसल अच्छी मात्रा में पैदा होती है। राई की खेती करने के लिए लगभग 1 हेक्टर की भूमि में 5 किलोग्राम राई के बीजों की आवश्यकता होती है। बीजों की बुवाई खेत के अंदर पंक्तियों में की जानी चाहिए और पंक्तियों की दूरी लगभग 30 सेंटीमीटर तक होनी चाहिए। पंक्तियों के अंदर बीजों की दूरी लगभग 10 सेंटीमीटर तक होनी चाहिए। और ध्यान देने वाली बात यह है कि राई के बीजों की भूमि में गहराई लगभग 4 से 5 सेंटीमीटर तक होनी चाहिए‌, इससे बीज अच्छी तरह से पोषण प्राप्त कर पाएंगे। राई की फसल में बीजों की बुवाई करने से पहले बीजों में थीरम,कैप्टान औरकारबेन्डाजिम 2.0 ग्राम की मात्रा से प्रति किलो बीजों में मिलाकर बीजों को उपचारित कर लेना है। राई की फसल की बुआई करने के लिए 15 से 25 अक्टूबर का समय उपयुक्त माना जाता है तथा राई की पछेती बुवाई करने के लिए 15 नवंबर से 7 दिसंबर का समय उपयुक्त माना जाता है।

राई की खेती में सिंचाई का कार्य

राई की खेती में सिंचाई का कार्य करना कोई मुश्किल भरा काम नहीं है। राई की खेती में पहली सिंचाई बीज की बुवाई के बाद पौधे के अंदर फूल आने के बाद करनी चाहिए और राई की खेती में दूसरी सिंचाई दाने निकलने के बाद करनी चाहिए। अगर खेत के अंदर हल्की नमी दिखाई दे तो कम मात्रा में सिंचाई कर देनी है इसके अलावा बुवाई के 15,20 दिन बाद निराई गुड़ाई का कार्य भी कर देना है।

राई की खेती में खाद्य एवं उर्वरक

राई की खेती करने के लिए राई का खेत तैयार होने के बाद प्रति हेक्टर के हिसाब से 10 टन सड़ी गोबर के खाद का उपयोग करें। इसी के साथ ही खेत के अंदर 60 KG नत्रजन,40 KG पोटाश और 40 KG स्फूर की मात्रा को आवश्यकतानुसार खेत में डालें। पोटाश की पूरी मात्रा को और नत्रजन की आधी मात्रा को खेत की अंतिम जुताई के समय खेत में डाल दे इन खाद और उर्वरकों से खेत के पोषक तत्वों की जरूरतें पूरी होती हैं। इसके बाद फसल के पौधों में फूल आ जाने पर उपनिवेशन के रूप में नत्रजन की आधी मात्रा को फिर से खेत में डाल दें। बुवाई करने से पहले भूमि की भी जांच कर ले अगर भूमि कमजोर हैं तो भूमि के हिसाब से जिंक फास्फोरस की मात्रा और गंधक की मात्रा का उपयोग कर भूमि को उपजाऊ बनाएं। अगर खेत किसी  असिंचित जगह पर हैं तो भूमि में 25kg स्फूर,25 से 30 kg नत्रजन और आवश्यकतानुसार पोटाश का भी उपयोग करें।

राई की खेती में निराई गुड़ाई का कार्य

राई की खेती में राई के पौधे के अलावा कई प्रकार के अनावश्यक पौधे भी उगते हैं। जिनको हटाना बहुत आवश्यक है इन पौधों को हटाने के लिए दो प्रकार की विधि का उपयोग किया जाता है रासायनिक विधि एवं प्राकृतिक विधि,

रासायनिक विधि में उर्वरकों की सहायता से खरपतवार को हटाया जाता है।

प्राकृतिक विधि के अंदर खेत के अंदर से राई के पौधे के अलावा अन्य पौधों को हटाना निराई गुड़ाई कहलाता है। राई की बुवाई के बाद 15 से 30 दिन बाद निराई गुड़ाई का कार्य करना आवश्यक है इस कार्य को करने से खेत में अनावश्यक पौधे मर जाते हैं जिसके कारण राई का पौधा अच्छी तरह से फुल पाता है। फसल में निराई गुड़ाई का कार्य करने से पौधे को उचित मात्रा में रोशनी एवं उचित मात्रा में हवा मिल पाती है।

राई की खेती में लगने वाले रोग एवं उनके रोकथाम के उपाय

राई की फसल के अंदर मुख्य रूप से आरा मक्खी और लाही किटो का आक्रमण देखने को मिल जाता है। इस रोग को रोकने के लिए मोनोक्रोटोफास 36 EC या 25 EC दवा को 1 लीटर की मात्रा में प्रति हेक्टेयर की दर से फसल में छिड़क दें। इसके अलावा राई की फसल में होने वाले अल्टरनेरिया अंगमारी,श्वेत फफोला रोग और पाउडरीया मिल्ड्यू मुख्य रोग हैं। इन

रोगो से फसल को बचाने के लिए मैनकोजेब 2 लीटर की मात्रा को 1 हजार लीटर पानी की मात्रा में गोल देना है। प्रति हेक्टर के हिसाब से आवश्यकता अनुसार बीज की बुवाई के 50 से 60 दिन पूर्व इस दवाई का छिड़काव कर देना है।

राई की फसल में कटाई

राई की फसल की कटाई करने के लिए फसल बोने के बाद लगभग 110 दिन से 120 दिन का इंतजार करना पड़ता है। इन दिनों के अंदर फसल पूर्ण रूप से कटने के लिए तैयार हो जाती हैं। राई की फसल को काटने से पहले उसमें 15 दिन पहले ही सिंचाई बंद कर देनी है। इसके बाद फसल को काट लेना है फसल को काटने के बाद इसे कुछ दिनों के लिए सुखा लेना है फिर थरेसिंग विधि के द्वारा पौधों में दानों को अलग कर लेना है। दानों को अलग कर लेने के बाद में अनाज भंडारण में संग्रह कर लेना है। अनाज भंडारण के अंदर फसल को कुछ दिनों तक फैला कर रखना है। इससे फसल के दाने ज्यादा वजन वाले होंगे।

राई की फसल करने में ध्यान रखने योग्य बातें

  • राई की खेती के लिए 20 डिग्री सेल्सियस तापमान उपयुक्त माना जाता है।
  • राई की खेती में बीज को तैयार करना एक बहुत आवश्यक काम है।
  • राई की उच्च फसल लगभग 110 से 130 दिन के अंदर पक कर तैयार हो जाती है।
  • समतल और उज्ज्वल निकासी वाली भूमि राई की खेती के लिए उपयुक्त मानी जाती हैं।
  • राई का पौधा एक समशीतोष्ण एवं उष्णकटिबंधीय पौधा है
  • राई की फसल में अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए सही समय पर सिंचाई करें।
  • राई की खेती में रासायनिक खाद के साथ-साथ गोबर के खाद का भी उपयोग करें जिससे उत्पादन में वृद्धि आती हैं।
  • राई की खेती के लिए सिंचाई की बहुत कम आवश्यकता होती है इसमें पहली सिंचाई पौधे में फूल आने पर एवं दूसरी सिंचाई पौधे में फलियां आ जाने पर कर देनी चाहिए।
  • राई की फसल बिल्कुल सरसों की फसल की तरह की जाती हैं।

राई की फसल का इतिहास

राई की फसल दुनिया में सबसे ज्यादा पूर्वी यूरोप,मध्य यूरोप और उत्तरी यूरोप में उगाई जाती है। इस फसल के कई प्रकार के नाम हैं। यह फसल गेहूं और जो की फसल से मिलती-जुलती है। राई मुख्य रूप से बेल्ट उत्तरी जर्मनी से पोलैंड और फिर पोलैंड से यूक्रेन,यूक्रेन से बेलारूस,बेलारूस से लिथुआनिया, और फिर लिथुआनिया के माध्यम से लातविया,लातविया के माध्यम से मध्य व उत्तरी रूस में फैली हुई हैं।

राई की फसल भारत में मुख्य रूप से पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश राज्य में की जाती है। दक्षिणी पश्चिमी एशिया में राई की खेती लगभग 6500 ईसा पूर्व में हुई थी। जो यूरोप में पश्चिम की ओर एवं बाल्कन प्राईद्वीप की ओर बढ़ रही थी। अब आमतौर पर आधुनिक राई यूरोप,एशिया और उत्तरी अमेरिका में बहुत बड़े पैमाने पर बोई जाती है।

FAQ

Q1. राई की फसल का वैज्ञानिक नाम क्या नाम है?

Ans:– राई की फसल का वैज्ञानिक नाम सीकेल सीरिएल (Secalecereale)” है। यह सीकेल वंश,सीरिएल जाति और ग्रामिनी कुल का एक पौधा है जो कि जो एवं गेहूं की फसल से एकदम मिलता-जुलता हुआ है।

Q2. राई की फसल कैसी हैं?

Ans:- राई की फसल रबी तिलहनी फसलों में अपना एक प्रमुख स्थान रखती है। राई की फसल में अगर समय पर सिंचाई की जाए तो इसके अंदर अत्यधिक मात्रा में लाभ प्राप्त होता है।

Q3. राई की फसल का दूसरा नाम क्या है?

Ans:- राई को ब्रैसिका निग्रा (brassica nigra) और काली सरसों के नाम से भी जाना जाता है। राई का रंग गहरे भूरे रंग एवं काले रंग के बीच होता है। इसका बीज गोलाकार में होता है और यह बीज कठोर होता है। यह बीच सरसों की सफेद किस्म की तुलना में तीखा एवं छोटा होता है। राई का उपयोग पाउडर बनाने और भोजन को अत्यधिक मात्रा में स्वादिष्ट बनाने के लिए किया जाता है।

Q4. राई की खेती के लिए कौन सा महीना उपयुक्त माना जाता है?

Ans:- राई की खेती के लिए अक्टूबर का महीना उपयुक्त माना जाता है। अक्टूबर के महीने में भी अक्टूबर का प्रथम सप्ताह राई की बुवाई के लिए उपयुक्त माना जाता है। इस महीने में हम राई के अलावा सरसों एवं अगर हम चाहे तो तिलहनी फसल कुसुम को भी लगा सकते हैं

Q5. राई का दाना कहां उगाया जाता है?

Ans:- राई का दाना मुख्य रूप से यूरोप,एशिया और उत्तरी अमेरिका में सर्वाधिक मात्रा में बोया जाता है। जिस क्षेत्र की मिट्टी और जलवायु इस फसल के लिए प्रतिकूल हो उसी क्षेत्र में इसका उत्पादन सर्वाधिक मात्रा में किया जाता है। यह फसल मुख्य रूप से सर्दी के मौसम में बोई जाती हैं।

Q6. सरसों और राई में क्या अंतर है?

Ans:- सरसों के दाने पीले और काले दोनों ही प्रकार के होते हैं, जबकि राई के दाने अपेक्षाकृत काले होते है और इनका आकार भी थोड़ा बहुत छोटा होता है। राई के दाने सरसों की अपेक्षा छोटे होते हैं।

Q7. राई किस तरह का अनाज है?

Ans:- राई भी एक प्रकार का अनाज है। यह अनाज गेहूं और जौ से संबंधित हैं। इसका सबसे ज्यादा उपयोग व्हिस्की बनाने एवं ब्रेड बनाने के लिए किया जाता है क्योंकि यह अपने बेहद स्वाद के लिए पूरी दुनिया में जाना जाता है।

Q8: राई का असली नाम क्या है?

Ans:- राई शब्द में रि गेलिक शब्द से आया है जिसका अर्थ राजा होता है। यह नाम उन सभी के साथ जोड़ा जाता है जो व्हिस्की एवं ब्रेड का उत्पादन करते हैं।

Q9. राई की सबसे अच्छी किस्म कौन सी हैं?

Ans:- पूसा बोल्ड राई की सबसे अच्छी किस्म मानी जाती हैं। यह किस्म में 120 से 140 दिन के अंदर पक्कर तैयार हो जाती हैं। इस किस्म के अंतर्गत प्रति हेक्टेयर की दर से 18 से 20 क्विंटल राई का उत्पादन आसानी से हो जाता है।

  1. भारत के अंदर राई कौनकौन से क्षेत्रों में उगाई जाती हैं?

Ans:- भारत के अंदर राई पंजाब,हरियाणा और उत्तर प्रदेश राज्य के अंतर्गत उगाई जाती है। राई ऐसी फसल है, जो गर्मी के मौसम को छोड़कर सभी मौसमों में उग सकती हैं। इसको सामान्य तौर पर विंटर हार्डी अनाज के नाम से भी जाना जाता है।

Vinod Yadav

विनोद यादव हरियाणा के रहने वाले है और इनको करीब 10 साल का न्यूज़ लेखन का अनुभव है। इन्होने लगभग सभी विषयों को कवर किया है लेकिन खेती और बिज़नेस में इनकी काफी अच्छी पकड़ है। मौजूदा समय में किसान योजना वेबसाइट के लिए अपने अनुभव को शेयर करते है। विनोद यादव से सम्पर्क करने के लिए आप कांटेक्ट वाले पेज का इस्तेमाल कर सकते है।

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