सफ़ेद सोने की खेती : किसानों के लिए वरदान, प्रति एकड़ लाखों की कमाई
कपास की खेती पूरी दुनिया में बहुत से देशों में की जाती है जिनमे से भारत भी शामिल है और भारत में आजकल इसकी खेती काफी अधिक होने लगी है। कपास का इतिहास किसी से छुपा नहीं है और पूरी दुनिया में शताब्दियों से इसकी खेती होती आ रही है। कपास की खेती के इतिहास में पूरी की पूरी मानव सभ्यता का इतिहास छिपा हुआ है। जहां तक आज के मानव कपास की खेती के इतिहास को जान पाये है उसके अनुसार इसकी खेती सिंधु घाटी की सभ्यता तक जाती है।
कपास को सफ़ेद सोना भी कहा जाता है क्योंकि इसकी खेती करके आज के समय में किसान मालामाल हो रहे है। बाजार में काफी अधिक भाव मिलने के चलते इसकी खेती से किसानों की आमदनी काफी अधिक हो रही है। भारत में कपास के इतिहास की अगर बात करें तो भारत में ये 5वीं सहस्रब्दी ईसा पूर्व से से उगाई जा रही है। भारत के कपास की खेती पूरी अर्थवयवस्था का एक हिस्सा बनी हुई है। चलिए आज के आर्टिकल में कपास की खेती कैसे की जाती है इसको लेकर पूरी जानकारी आपको देते है ताकि आपको इसकी खेती करने से पहले इसके बारे में पूरी जानकारी हासिल हो सके।
कपास की खेती सबसे अधिक कहां कहां होती है?
पूरी दुनिया में कपास की खेती की जाती है और इसका इतिहास बहुत ही पुराना है। दुनिया में बहुत से देश ऐसे हैं जहां पर इसकी खेती सबसे अधिक होती है। इन देशों में भारत, चीन, अमेरिका, पाकिस्तान, ब्राजील, ऑस्ट्रेलिया, तुर्की, उज्बेकिस्तान और रूस शामिल है। ये सभी देश कपास की खेती के प्रमुख देश है और इन देशों के अलावा दुनिया के और भी कई देशों के इसकी खेती की जाती है लेकिन वहां पर इसको प्रमुखता से नहीं उगाया जाता।
भारत में इसकी खेती कई राज्यों में की जाती है और कपास के निर्यात में भी भारत का नंबर काफी ऊपर आता है। भारत के महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना राज्यों में कपास की खेती सबसे अधिक की जाती है और ये राज्य कपास की खेती में सबसे ऊपर आते है। हालांकि इसके अलावा भी कई राज्य हैं जिनमे कपास की खेती की जाती है जैसे हरियाणा, उत्तरप्रदेश पंजाब आदि में। लेकिन ये राज्य कपास की खेती प्रमुखता से नहीं करते है।
कपास की उन्नत किश्मे कौन कौन सी है?
भारत में कपास की बहुत सारी किस्मों की बुवाई की जाती है और कुछ किस्मे ऐसी है जो एरिया के हिसाब से जलवायु को देखते हुए उगाई जाती है। इन किस्मों में F1818, F2261, BG-2, MCU 12, MECH 602, JK 133, Suvin, Jayadhar, Khandwa-2 आदि प्रमुख है। ये सभी किस्मे रोग प्रतिरोधक क्षमता के साथ में विकसित की गई है। किसानों को इन किस्मों की खेती से काफी अधिक पैसवार मिलती है और साथ में उच्च क्वालिटी के रेशे प्राप्त होते है।
कपास की बुआई का समय कौन सा है?
भारत में कपास की बुवाई का समय मई और जून का महीना होता है लेकिन कई बार बारिश के देरी के चलते इसकी बुवाई भी काफी देरी से की जाती है। किसानों को इस बात का ध्यान रखना होगा की देरी से बोई गई कपास में बाद में रोगों के चलते नुकसान होने की सम्भावना भी बढ़ जाती है। इसके अलावा कपास की बुवाई का समय थोड़ा बहुत ऊपर निचे मिट्टी की नमी और मौसम पर भी निर्भर करती है।
कपास की खेती में लगने वाले प्रमुख रोग?
कपास की खेती में कई प्रकार के रोग लग जाते है और सभी किसानों को अपनी कपास की खेती को इन रोगों से बचाव करने के उपायों पर ध्यान जरूर देना चाहिए। अगर समय रहते इन रोगों की रोकथाम नहीं की जाए तो ये कपास की खेती को नष्ट कर सकते है। देखिये कपास की खेती में कौन कौन से रोग लगते है।
विल्ट रोग : यह कपास का सबसे विनाशकारी रोग है। यह रोग फुसैरियम नामक कवक के कारण होता है। रोगग्रस्त पौधे पीले पड़ जाते हैं, मुरझा जाते हैं और सूख जाते हैं।
पत्ती धब्बा रोग : यह रोग एल्टरनेरिया और सेरकोस्पोरा नामक कवकों के कारण होता है। रोगग्रस्त पत्तियों पर भूरे रंग के धब्बे बन जाते हैं, जो बाद में पत्तियों को झड़ने का कारण बनते हैं।
जड़ गलन: यह रोग राइजोक्टोनिया और फाइटोफ्थोरा नामक कवकों के कारण होता है। रोगग्रस्त पौधों की जड़ें गलने लगती हैं, जिससे पौधे कमजोर हो जाते हैं और मर जाते हैं।
मोज़ेक: यह रोग वैरस के कारण होता है। रोगग्रस्त पत्तियों पर पीले और हरे रंग का मोज़ेक पैटर्न बन जाता है।