मटर की खेती कैसे करें, मटर की खेती में ध्यान रखने वाली बातें जो देती है बम्पर पैदावार
किसान के लिए मटर की खेती बहुत ही फायदेमंद होती है। इससे किसान को पैसे तो मिलते ही है साथ में उसके खेत भी फिर से उपजाऊ बन जाते है। मटर का इस्तेमाल बहुत सी अलग अलग तरह की सब्जियों में किया जाता है। मटर के सब्जियों में डालने से सब्जी का टेस्ट लाजवाब हो जाता है। आजकल मटर की खेती ग्रीन हाउस बनाकर लगभग पुरे साल की जाती है। लेकिन ग्रीन हाउस में उगाई गई मटर का स्वाद वैसा नहीं होता जैसा कुल खेतों में बोई गई मटर का होता है। इस आर्टिकल में आप पढ़ेंगे की मटर की खेती कैसे की जाती है और मटर की खेती के दौरान किन किन बातों का ध्यान रखना होता है।
Pea Farming: मटर का नाम कौन नहीं जानता। मटर का नाम आते ही मटर पनीर की याद आ जाती है। आप जानकर हैरान रह जाओगे की मटर एक ऐसी सब्जी है जिसकी पुरे साल भर डिमांड रहती है और लोग धड्ड्ले से इसको खरीदते है। आपको ये भी जानकर आश्चर्य होगा की जिस भी खेत में मटर की खेती की जाती है उस खेत की मिटटी में उर्वरक शक्ति बढ़ जाती है और आग्गे बोये जानी वाली फसलों में बेहतरीन पैदावार होती है।
किसान के लिए मटर की खेती बहुत ही फायदेमंद होती है। इससे किसान को पैसे तो मिलते ही है साथ में उसके खेत भी फिर से उपजाऊ बन जाते है। मटर का इस्तेमाल बहुत सी अलग अलग तरह की सब्जियों में किया जाता है। मटर के सब्जियों में डालने से सब्जी का टेस्ट लाजवाब हो जाता है। आजकल मटर की खेती ग्रीन हाउस बनाकर लगभग पुरे साल की जाती है। लेकिन ग्रीन हाउस में उगाई गई मटर का स्वाद वैसा नहीं होता जैसा कुल खेतों में बोई गई मटर का होता है। इस आर्टिकल में आप पढ़ेंगे की मटर की खेती कैसे की जाती है और मटर की खेती के दौरान किन किन बातों का ध्यान रखना होता है।
मटर का इतिहास क्या है?
मटर को सभी लोग अलग अलग तरह की सब्जियों में मिक्स करके बहुत ही चाव से खाते है। मटर की उत्पत्ति की बात करें तो मटर की खेती बहुत प्राचीन समय से ही होती आ रही है। इसकी उत्पत्ति का तो ठीक से कोई प्रमाण नहीं है लेकिन संभवत मटर दक्षिण-पश्चिमी एशिया से उत्पन्न होकर ही यूरोप के शीतोष्ण क्षेत्रों तक फैला था। अगर मटर के अनुवांशिक विविधता के आधार ओर देखे तो मटर की उत्पत्ति के चार केंद्र माने जाते है जिसमे मध्य एशिया, पूर्व सेबिसीनिया, और भूमध्य सागरीय क्षेत्र तथा ब्रिटेन। आज भी ब्रिटेन में मटर को रंजकहीन के रूप में उगाया जाता है। इसके बाद जब कलमबद के द्वारा अमेरिका की खोज हुए तो उसके बाद से अमेरिका तक मटर की पहुँच हुए और वहां पर भी खेती के रूप में उगाया जाने लग गया। वही अगर चीन की बात करें तो चीन में मटर पहली शताब्दी के आसपास पहुंचा था और उसके बाद वहां पर भी मटर को खेती के रूप में बोन लग गए थे ।
मटर की खेती के लिए खेत की तैयारी कैसे करें?
मटर की खेती के लिए खेत की तैयारी खरीफ की फसल काटने के साथ ही हो जाती है। खरीफ की फसल काटने के तुरंत बाद से खेत में पलटा लगाकर खेत की जुताई कर देनी चाहिए ताकि खरीफ की फसल की खेती के अवशेस अच्छे से जमीं में मिल जाए। खरीफ की फसल के ये अवशेष मटर की खेती में खाद के तौर पर काम करेंगे।
मटर की खेती के लिए सबसे पहले खेत की दो बार अच्छे से जुताई करनी होती है ताकि खेत में मिटटी अच्छी तरफ से भुरभुरी हो जाए। इसके बाद खेत में गोबर की खाद डालकर उसकी फिर से जुताई करनी होती है। इस जुताई में मेज लगातार खेत को साथ साथ में समतल भी किया जाता है। इसके बाद खेत मटर की फसल बौने के लिए पूरी तरफ से तैयार हो जाता है।
मटर की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु और उपयुक्त मिटटी कैसी होनी चाहिए?
मटर की खेती करने के लिए आपके खेत की मिटटी दोमट अगर है तो ये संबसे बेहतर मानी जाती है। दोमट मिटटी में मटर की पैदावार भी बहुत अच्छी होती है। नदियों के किनारे की मिटटी में भी मटर की फसल अच्छी पैदावार देती है। लेकिन इसके अलावा यदि काली मिटटी या फिर किसी भी तरह की अम्लीय मिटटी में मटर की फसल लग तो जाती है लेकिन पैदावार ना के बराबर होती है। इसलिए मटर की खेती हमेशा दोमट मिटटी में ही करनी चाहिए।
मटर की फसल जिस भी खेती में आपको उगानी है उस खेत की मिटटी का पीएच लेवल भी देखना बहुत जरुरी होता है। क्योंकि इसका भी सीधा सीधा सम्बन्ध पैदावार से है। इसलिए आपके खेत की मिटटी का पीएच लेवल 6 से 7.5 अगर है तो ये सबसे बेहतरीन मिटटी है जिसमे आप बहुत ही आसानी से मटर की खेती करने अधिक मुनाफा कमा सकते है।
मटर की खेती के लिए बुवाई का समय क्या होता है?
आमतौर पर खरीफ की फसल के तुरन्तत बाद से खेतों में मटर बोन की तैयारी शुरू हो जाती है। मटर की बुवाई का समय अक्टूबर और नवम्बर महीने में सबसे उत्तम माना जाता है। वैसे आजकल तो ग्रीन हाउस का निर्माण करके मटर की खेती को साल भर बोया जाता है। लेकिन उसमे किसान की लगत बहुत अधिक हो जाती है और इस कारन से बचत ज्यादा नहीं हो पाती। इसलिए बिना ग्रीन हाउस का निर्माण किये किसान भाई अपने खेतों में मटर की फसल को खरीफ की फसल की कटाई के तुरंत बाद से कर सकते हैं।
मटर की बुवाई के समय इस बात का ध्यान रखना होता है की बीज की जमीन में गहराई 5 सेमी इ ज्यादा नहीं होनी चाहिए। इससे अधिक गहराई होने पर मटर के दानो से निकले कोपल को बहार निकलने में मुश्किल होती है और कई बाद अंकुरित बीज अंदर ही नष्ट भी हो जाते है। मटर से मटर के पौधे की दुरी लगभग 30 सेमी जरूर रखनी चाहिए ताकि बेल को फैलाव अच्छे से मिल सके।
मटर की बुवाई से पहले उर्वरक प्रबंधन कैसे करना चाहिए?
मटर की खेती में बुवाई से पहले उर्वरक का प्रबंधन करना बहुत ही जरुरी होता है। इसके लिए सबसे पहले आपको अपने खेत की मिटटी की जाँच जरूर करवानी चाहिए। इससे आपको ये पता चल जायेगा की आपके खेत की मिटटी में किस चीज की कमी है। बुवाई से ठीक पहले खेत के अंदर नाइट्रोजन और फास्फोरस के घोल का छिदवाव जरूर करना चाहिए। इसके अलावा अगर आपके खेत में पोटाश की कमी है तो पोटाश या फिर जाँच के दौरान जो भी कमी पाई जाती है उसका छिड़काव करना बहुत जरुरी हो जाता है। ये आपकी फसल के लिए पोषक तत्वों की कमी को पूरा करने के लिए भी बहुत जरुरी है। इससे आपके मटर के पौधों का विकाश बहुत जल्दी होगा और पैदावार भी अधिक होती है।
मटर की खेती के लिए मटर की उन्नत किस्मे कौन कौन कौन सी है?
भारत में मटर की अनेक किस्मे पाई जाती है। अलग अलग राज्यों के अनुसार और अलग अलग जलवायु के हिसाब से सभी जगह अलग अलग किस्मों के मटर बोये जाते हैं। इनमे से कुछ किस्मे जो बहुत प्रसिद्ध है वो इस प्रकार से हैं –
- आर्किल
- बी.एल.
- जवाहर मटर 3
- जवाहर मटर – 4
- हरभजन EC 33866
- पंत मटर – 2
- मटर अगेता ई-6
- पंत सब्जी मटर
- पंत सब्जी मटर 5
- काशी नंदिनी
- काशी मुक्ति
- काशी उदय
- काशी
इन किस्मो में से आखिर की चार काशी नंदिनी, काशी मुक्ति, काशी उदय और काशी किस्मे जल्दी तैयार होने वाली किस्मे हैं। साथ में ये किस्मे अगेती भी है और इनके तैयार होने की अवधी केवल 50 से 60 दिन की है। इतने दिन में ये फसल देने लगती है।
मटर की खेती में सिंचाई कब और कैसे करनी चाहिए?
मटर की फसल की बिजाई के बाद तो मिटटी की नमी पर निर्भर करता है की आपको इसकी सिंचाई करनी चाहिए या नहीं करनी चाहिए। सर्दी का मौसम होता है इसलिए खेत में नमी बरकरार रहती है और यदि बारिश नहीं होती है तो आप एक या दो सिंचाई 20 दिन के अंतराल पर कर सकते हैं। लेकिन इसके अलावा आपको सबसे ज्यादा ध्यान उसके बाद की सिंचाइयों पर करना होता है। एक तो फूल जब आने का समय होता है और फूल आने के बाद आपको सिंचाई जरूर करनी चाहिए। इसके अलावा फूल से जब फल बनने लगता है उस समय भी आपको सिंचाई जरूर करनी चाहिए। लेकिन इसके साथ साथ में आपको ये भी ध्यान रखना है की मटर की फसल पानी के ठहराव से ख़राब भी हो जाती है। इसलिए खेत में पानी की निकासी का भी पूरा प्रबंध करना अति आवश्यक है।
मटर की खेती के लिए बीजो का उपचार कैसे करना चाहिए?
मटर के बीजो का उपचार किसान भाइयों को हमेशा राइजोबियम कल्चर से ही करना चाहिए क्योंकि मटर के दलहन की फसल होती है। राइजोबियम कल्चर में जो जीवाणु होते है वो मटर की फसल की जड़ों में गांठो को अच्छे से विकसित करने में सहायता करते हैं। इसलिए राइजोबियम कल्चर का घोल बनाने के लिए एक लीटर पानी में गुड़ का घोल बनाकर उसमे लगभग ढाई से तीन पैकेट राइजोबियम कल्चर मिलाकर अच्छे से मिक्स कर दें।
अब मटर के बीज जो आपको बुवाई करने है उनको इस घुल में अच्छे से डुबोकर छाया में सूखने के लिए रख दीजिये। जब उपचारित बीज अच्छे से सुख जाएँ तो इन बीजों की बुवाई करनी चाहिए। इसके अलावा आप रासायनिक तरीके से भी बीजों का उपचार कर सकते है। रासायनिक तरीके से बीजों का उपचार करने के लिए आपको कार्बेण्डजीम 12%, मेंकोजेब 75% WP की 200 ग्राम मात्रा को प्रति सो किलोग्राम के हिसाब से बीज को उपचारित करने के बाद बुवाई करनी चाहिए। इससे बीजों को मिटटी के अंदर कीटों से सुरक्षा मिलती है और बीजों के अंदर अंकुरण भी अच्छे से होता है।
मटर की फसल में खरपतवार नियंत्रण के लिए क्या करना चाहिए?
मटर की फसल में खरपतवार ज्यादातर चौड़ी पट्टी वाले होते है। सर्दी के मौसम में ज्यादातर बथुआ ही खरपतवार के रूप में उगता है। हालाँकि कुछ किसान भाई इस बथुआ को सब्जी के रूप में भी इस्तेमाल करते है और बाजार में बेचकर मुनाफा भी कमाते है। लेकिन अगर आपकी मटर की फसल में इसकी मात्रा ज्यादा है तो फिर ये आपकी फसल को नुकसान भी पहुँचता है। इसकी रोकथाम के लिए आपको 5 लीटर स्टाम्प-30 प्रति 600 लीटर पानी में मिलाकर घोल तैयार करना है और फिर उसका छिड़काव अपनी फसल में करना है। इसके छिड़काव करने से बथुआ के साथ साथ कृष्णनील और सत्पत्ति जैसे खरपतवारों से भी काफी हद तक छुटकारा मिल जाता है।
मटर की फसल में लगने वाला सफेद चूर्णी धब्बे का इलाज कैसे करें?
मटर की फसल में सबसे जायदा सफेद चूर्णी धब्बे के रोग का ही प्रकोप होता है। इसलिए समय रहते किसान भाइयों को अपनी फसल में इस सफेद चूर्णी धब्बे के रोग का इलाज कर लेना चाहिए। इसके इलाज के लिए आपको थिओफिनेट मिथाइल 75 WP 300 ग्राम को लगभग 200 लीटर पानी में मिलाकर इसके घोल का छिड़काव करना चाहिए। इसके छिड़काव से सफेद चूर्णी धब्बे के रोग का पूरी तरफ से खत्म हो जायेगा और मटर के पौधों को ख़राब होने से बचाया जा सकता है।
मटर की फसल की कटाई और तुड़ाई कैसे और कब करनी चाहिए?
मटर की फसल में जब फलियों का रंग गहरा हरा होने लगे तो उसकी फलियों की तुड़ाई करनी चाहिए। मटर की फसल में 4 से 5 तुड़ाई बड़ी आसानी से की जा सकती है और ते तुड़ाई किसान भाई 5 दिन के अंतराल पर कर सकते है। हर 5 दिन के अंतराल पर दूसरी फलियां तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है। लेकिन कभी कभी तुड़ाई जायदा बार भी हो सकती है लेकिन ये निर्भर करता है आपके खेत की उपजाऊ शक्ति पर। अगर खेत में उपजाऊ शक्ति अच्छी यही तो किसान भाई 7 बाद भी मटर की फलियों की तुड़ाई कर सकते है।