Fasal Jankari

मटर की खेती कैसे करें , मटर की उन्नत खेती से मोटा मुनाफा कमा सकते है किसान

दलहनी फसलों में मटर अपना एक अलग स्थान रखती है। मटर की खेती बहुत कम समय में हो सकती है। इसलिए इसे साल में दो बार किया जा सकता है। यह इसका एक बड़ा फायदा है। क्योंकि जहां एक ओर कई दलहनी फसलें ऐसी है, जिन्हें साल में सिर्फ एक बार उगाया जा सकता है। वही मटर को साल में दो बार उगाया जा सकता है। जिससे किसान को अधिक लाभ प्राप्त होता है।

मटर का वैज्ञानिक नाम पाइसम सैटिवम (कारलोस लिनियस) है एवं यह पादप जगत से संबंधित एक फूल धारक द्विबीजपत्री पौधा है। वही इसका केंद्र दक्षिणी एशिया है।

  • मटर की फसल भूमि की उर्वरा शक्ति भी बढ़ाती है। भारत में मटर का उत्पादन लगभग 7.9 लाख हेक्टर भूमि में किया जाता है और इस आंकड़े के अनुसार भारत साल में तकरीबन 8.3 लाख टन एवं 1021 किलोग्राम प्रति हेक्टर मटर का उत्पादन करता है।
  • मटर की खेती से भूमि को कोई नुकसान नहीं पहुंचता है, बल्कि यह भूमि की उर्वरा शक्ति को बढ़ाती है। क्योंकि इसमें राइजोबियम नामक जीवाणु पाया जाता है। जो भूमि की उर्वरा शक्ति एवं उपजाऊ क्षमता को बढ़ाता है।
  • यदि हम इस मटर की खेती अक्टूबर से नवंबर महीने के मध्य करते है, तो इसकी अच्छी पैदावार हो जाती है जिससे अधिक मुनाफा होता है। अक्टूबर से नवंबर महीने में मटर की खेती करने से दो बार pea crop की खेती सकते हैं, क्योंकि यह साल में दो बार आसानी से की जा सकती है।
  • भारत में सबसे ज्यादा मटर की खेती उत्तर प्रदेश राज्य में की जाती है, उत्तर प्रदेश राज्य में 4.34 लाख हेक्टर में मटर की खेती की की जाती है। जो भारत देश में मटर के कुल उत्पादन का 53.7% हिस्सा है। इसके बाद दूसरा स्थान मध्य प्रदेश का है, जहां पर 2.7 लाख हेक्टर क्षेत्र में मटर की खेती होती है। इसके अलावा उड़ीसा, बिहार राज्य में भी मटर की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है।

तो दोस्त चालिए जानते हैं, मटर की खेती के बारे में संपूर्ण जानकारी।

मटर की खेती के लिए खेत की तैयारी

  • वैसे तो मटर की खेती सभी प्रकार की मृदाओं में की जा सकती है, परंतु विशेष रूप से मटर की खेती के लिए एक गहरी दोमट मिट्टी अच्छी मानी जाती है। इस मिट्टी में मटर की खेती अच्छी होती है और उत्पादन में बढ़ोतरी भी होती है।
  • मटर के लिए भूमि अच्छी तरह से तैयार करने के लिए भूमि की जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करनी चाहिए ।
  • मटर की बुआई खरीफ की फसल के बाद की जाती है, तो खरीफ की फसल के अवशेषों को अच्छी तरह से हटाए साथ ही बुआई से पूर्व फसल में गोबर का खाद अवश्य डालें
  • जुताई करते समय यदि आप गोबर का खाद डालते हो तो फसल को बहुत फायदा होता है।
  • जिस खेत में मटर की फसल की बुआई कर रहे हो, उस खेत में आपने धान की खेती भी की है, तो उसके मिट्टी के टिलों को अच्छे से तोड़े जिसके लिए आप किसी भी प्रकार का हल उपयोग में ले सकते हैं।

मटर की उन्नत किस्मे

नीचे हमने मटर की कुछ ऐसी वैरायटी के बारे में बात की है, जिन की खेती सर्वाधिक की जाती है। निम्न दी गई मटर की वैरायटी आपको ज्यादा उत्पादन प्रदान करती है।

अपर्णा मटर

  • मटर की इस अपर्णा किस्म की खेती सर्वाधिक मध्य पूर्वी और पश्चिमी क्षेत्रों में की जाती है।
  • अपर्णा मटर  की फसल लगभग 120 से 140 दिनों में तैयार हो जाती है।
  • यह किस्म विल्ट और पॉड बोर्स नामक रोगों से लड़ने में सहायक है।
  • यहां तक कि यह वैरायटी पाउडर फफूंद और लीफ माइनर जैसी बीमारियों से भी लड़ती है।
  • अपर्णा मटर एक हेक्टर में लगभग 25 से 30 क्विंटल मटर का उत्पादन करती है।

बायोसीड P-10

मटर की यह वैरायटी अधिक पैदावार देने के लिए जानी जाती है, इसमें प्रत्येक फली में दानों की संख्या 10 से ज्यादा रहती है। बायोसीड P-10 की फसल में बुआई के 65 से 75 दिनों पश्चात ही फलियां आ जाती है।  अर्थात काफी कम समय में यह वैरायटी पक कर तैयार हो जाती है।

जवाहर मटर

यह मटर बायोसीड P-10 से भी बेहतर है, क्योंकि इस मटर की वैरायटी 50 दिनों के अंदर ही पक जाती है और फलियां तोड़ने लायक हो जाती है। जवाहर मटर (Jawahar Matar) एक हेक्टर में लगभग 4 टन मटर का उत्पादन कर सकती है। जवाहर मटर की इस वैरायटी का विकास अर्ली बैजर एवं जबलपुर टी 19 के संकरण द्वारा किया गया था।

आर्किल

यह मटर की अगेती किस्म है। मटर की आर्किल वैरायटी एक विदेशी किस्म है जिसे फ्रांस से भारत लाया गया था इस वैरायटी का उपयोग बड़े क्षेत्रों में किया जाता है, जहां अधिक मात्रा में मटर की पैदावार की जाती है।

  • अर्किल मटर बाजार में ताजा बेचने और निर्जलीकरण दोनों के लिए ही उपयुक्त है।
  • इसकी पहली फलियों की तुड़ाई 60 से 65 दिनों के अंदर की जाती है।
  • अर्किल मटर लगभग 10 टन प्रति हेक्टर की उपज प्रदान करती है।

पूसा पन्ना

मटर की इस वैरायटी का विकास सन् 2001 में किया गया था, पूसा पन्ना मटर की खेती पश्चिमी उत्तर प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, पंजाब एवं उत्तराखंड राज्यों में की जाती है। यह फसल शीघ्र तैयार होने वाली फसल है। और इसकी बुआई के 90 दिनों पश्चात इसकी फलियों की पहली तुड़ाई की जाती है ‌।‌‍‌‍‍‌

यह सभी किस्में मटर की उन्नत एवं अधिक उत्पादक लागत देने वाली किस्में है एवं इनमें से कुछ किस्में ऐसी है जो काफी कम रोगग्रस्त होती है। इनमें रोगों से लड़ने की क्षमता पाई जाती है।

इसके अलावा भी बाजार में मटर की बहुत सारी वैरायटीया मौजूद है। जिनका इस्तेमाल आप कर सकते हैं। यह वैरायटीया भी काफी अच्छी पैदावार देने वाली है। इनका उपयोग भी लोग बड़ी मात्रा में करते हैं।

जैसे किआजाद मटर, बोनविले, काशी उदय, काशी शक्ति, पंत मटर, विवेक मटर, अर्ली बैजर, पूसा श्री, हिसार हरित (पी.एच 1), हरभजन (ईसी 33866), मटर अगेता (-6), जवाहर पी – 4, जवाहर मटर 3 (जे एम 3), आदि शामिल है‌‍‌

मटर की खेती के लिए मौसम कैसा होना चाहिए?

  • मटर की फसल के लिए तापमान सामान्य होना चाहिए एवं ज्यादा तापमान होने पर मटर की फलियों में दाने नहीं आते हैं। इसलिए यह जरूर ध्यान रखें कि मटर की फसल ठंडे इलाकों में ही की जानी चाहिए।
  • मटर की फसल को बारिश से काफी ज्यादा नुकसान पहुंच सकता है। इसलिए मटर की फसल को सर्दियों के मौसम में ही बोया जाना चाहिए ।
  • मटर की फसल की आप अक्टूबर से नवंबर महीने के मध्य बुआई कर सकते हैं।
  • मटर की फसल को पकने के लिए और फलियों में बीज अंकुरित होने के लिए तापमान 20 से 22 डिग्री सेल्सियस के मध्य होना आवश्यक है, लेकिन यदि आप चाहते हैं कि फलियों में भरपूर दाने आए तो तापमान 10 डिग्री से 15 डिग्री सेल्सियस के मध्य होना चाहिए।

मटर का बीज

यदि आप मटर की खेती करते हो तो आपको एक बीस्से के लिए लगभग 1.5 किलो बीज की आवश्यकता पड़ती है। अर्थात आपको एक बीघा जमीन में लगभग 30 से 33 किलो मटर के बीज की आवश्यकता पड़ती है। ध्यान रहे मटर का बीज ज्यादा ना हो क्योंकि यदि मटर ज्यादा घनी है। तो उत्पादन क्षमता में कमी आ सकती है, इसलिए मटर के पौधे के मध्य दुरी अवश्य होनी चाहिए।

मटर की बुआई एवं बुआई करने का तरीका

मटर की खेती के लिए बीज की बुआई करने का तरीका और बुआई कैसे करते हैं यह जानना किसान के लिए जरूरी है। मटर के बीज बुआई करते समय आपको 3 से 5 ग्राम बाविस्टिन या थिरम की मात्रा को 1 किलो बीज में मिलाकर बीज की बुआई करनी चाहिए ।बाविस्टिन या थिरम को बीच में मिलाकर बुआई करने से फसल में रोग कम लगते हैं और उत्पादन क्षमता बढ़ती है।

बुआई करने का तरीका

  1. यदि आप बड़े पैमाने पर मटर की खेती करते हो, तो आप बीज की बुआई मशीनों द्वारा भी कर सकते हो और यदि आप एक या दो बीघा जमीन में मटर की खेती करते हो, तो आप मजदूरों के द्वारा बीज की बुआई करवा सकते हो । हालांकि मजदूरों द्वारा बीज की बुआई करने में किसान को ही फायदा है, क्योंकि हाथों से बुआई करने से बीज पर्याप्त दूरी पर लगता है।  जबकि मशीन द्वारा बुआई करने में बीजों की बर्बादी होती है।
  2. इसके अलावा बहुत सारे किसान भाइयों को मटर की बीज बुआई करने का सही तरीका नहीं पता होता है। इसके लिए आपको सबसे पहले बीज को छाया वाले स्थान पर किसी प्लास्टिक की पन्नी में भरकर, उस पर पानी का थोड़ा सा छिड़काव करके, बांध देना चाहिए। थोड़ी देर बाद आपको उसमें 3 से 5 ग्राम बाविस्टिन या थिरम दवाई मिलानी चाहिए और हाथों से मिलाकर अच्छे से मिलाना चाहिए, उसके बाद आपको मशीन या हाथों से बीज को जमीन में डालना चाहिए।
  3. इसके अलावा यदि आप मटर के बीज की बुआई के लिए मशीन का इस्तेमाल नहीं करते हो, तो आपको कुदाल की मदद से लाइन खींचकर उसमें हाथों से बीज की बुआई भी कर सकते हैं। ज्यादातर किसान यह कार्य भी करते हैं। इससे मटर के पौधे के बीच में पर्याप्त दूरी बन जाती है। जबकि मशीन द्वारा बीज बुआई में बीज कहीं पर ज्यादा और कहीं पर ज्यादा पास-पास गिर सकते हैं।
  4. बुआई करने से पहले खेत में अंकुरण के लिए पर्याप्त नमी मौजूद होनी चाहिए और खेत की हकाई कल्टीवेटर द्वारा होनी चाहिए।

सिंचाई

  • मटर की खेती में मटर की बुआई के 10 से 12 दिनों के पश्चात सिंचाई करना सही माना जाता है। मटर की सिंचाई बारिश और भूमि पर निर्भर करती है यदि मृदा शुष्क है तो सिंचाई जल्द ही करनी पड़ती है और नमी वाले इलाकों में सिंचाई 10 से 12 दिनों के पश्चात ही करनी चाहिए मटर की फसल में लगभग 2 से 3 सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है।
  • मटर में पहली सिंचाई बुआई से पूर्व ही करना बेहतर रहता है। इससे अच्छी पैदावार होती है तथा दूसरी सिंचाई फूल आने के पश्चात की जाती है और तीसरी सिंचाई फसल में फलियां लग जाने के पश्चात करनी चाहिए।
  • ध्यान रहे दोस्तों मटर की फसल में ज्यादा सिंचाई करना नुकसानदायक साबित हो सकता है। क्योंकि इससे फसल की जड़े सड़ सकती है।

खाद एवं उर्वरक

  • मटर की फसल में खाद एवं उर्वरकों का प्रयोग मिट्टी की संपूर्ण जानकारी प्राप्त करने के बाद ही करनी चाहिए यदि आपने मिट्टी की जांच नहीं की है, तो खाद एवं उर्वरक का प्रयोग कम मात्रा में ही करें क्योंकि यह मिट्टी की उपजाऊ क्षमता को कम कर सकते हैं।
  • मटर के लिए गोबर खाद लगभग 50 क्विंटल प्रति एकड़ कि दर से बुआई से पूर्व ही फसल में डालें
  • इसके अलावा डीएपी एवं म्यूरेट ऑफ पोटाश खाद का इस्तेमाल 25 किलोग्राम प्रति एकड़ बुआई के समय करना चाहिए।

मटर की फसल की निराई गुड़ाई

मटर के साथ-साथ अन्य फसलों में भी खरपतवार की बहुत ज्यादा समस्या रहती है खरपतवार फसल को खराब कर सकता है एवं फसल को दिए जाने वाले पोषक तत्व को खुद ग्रहण करके फसल में उत्पादन क्षमता को कम कर सकता है। इसलिए फसल से खरपतवार को हटाने के लिए निराई गुड़ाई विधियों को काम में लिया जाता है जिससे का खरपतवार को हटाया जाता है।

मटर की फसल में निराई गुड़ाई करने के लिए हम तीन विधियां काम में ले सकते हैं।

कुदाल द्वारा निराई गुड़ाई

फसल से खरपतवार को हटाने के लिए कुदाल के द्वारा निराई गुड़ाई की जाती है। इसमें मजदूरों की आवश्यकता पड़ती है, जिन फसलों के पौधों के मध्य कुछ दूरियां होती है एवं पंक्तियां एक दूसरे से लगभग 30 सेंटीमीटर की दूरी पर होती है। उन फसलों में निराई गुड़ाई कराकर खरपतवार को जड़ से उखाड़ सकते हैं।

रासायनिक विधि द्वारा निराई गुड़ाई

जो किसान बड़े क्षेत्रफल में मटर की खेती करते हैं, उन किसानों को मजदूर लगाने में ज्यादा खर्चा उठाना पड़ता है। इसलिए वह किसान रासायनिक उर्वरकों की सहायता से खरपतवार को नष्ट करते हैं। जो कि खेत की उपजाऊ क्षमता को कम करता है। परंतु आज के समय में बहुत बड़ी मात्रा में रासायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल किया जा रहा है, जो सही नहीं है।।

  • यांत्रिक विधि

जो किसान मजदूर एवं रसायनों से संतुष्ट नहीं है, वह लोग खरपतवार को हटाने के लिए निराई गुड़ाई के रूप में यांत्रिक विधि का उपयोग करते हैं। इस विधि में मशीनों के द्वारा खरपतवार को जड़ से उखाड़ा जाता है। हालांकि यह मशीनें काफी महंगी आती है।

मटर में रोग और उनकी रोकथाम

मटर का पौधा ज्यादा बढ़ा ना होकर सतह पर चिपक कर ही फैलता है। इसलिए इसमें किट और फफूंद जैसे रोग देखने को मिलते हैं अब हम मटर में पैदा होने वाले रोग और उनके रोकथाम के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे, मटर में होने वाले प्रमुख रोग निम्न है

दीमक रोग

लक्षणयह रोग मटर के पौधे में कभी भी लग सकता है। आमतौर पर इस रोग का प्रकोप जब पौधे छोटे होते हैं, तब देखने को मिलता है। इस रोग में जो कीट होता है वह पौधे की जड़ों में रहकर पौधे की जड़ को नुकसान पहुंचाते हैं। जिससे पौधा सूखकर मुरझा जाता है और कुछ दिन बाद यह रोग दूसरे पौधों में फेल कर पूरी फसल बर्बाद कर देता है।

रोकथाम

  1. इस रोग की रोकथाम के लिए बाविस्टीन की उचित मात्रा को बिज में मिलाकर बिज को उपचारित करना चाहिए।
  2. यदि यह रोग खड़ी फसल में होता है, तो इससे बचने के लिए क्लोरपाइरीफास 20% E.C. की 2.5 लिटर मात्रा को प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करके पौधों में सिंचाई करनी चाहिए।
  3. भूमि को अच्छी तरीके से उपचारित करने के लिए नीम की खली को जुताई के समय भूमि पर छिड़कना चाहिए।
  4.  यदि दीमक की मात्रा अधिक है, तो गोबर खाद का इस्तेमाल ना करें।

कटवर्म

लक्षणयह रोग एक कीट के कारण फैलता है। इस रोग कि गिंडार पौधे को खाकर सुखा देती है। यदि यह रोग ज्यादा बढ़ जाता है, तो फसल की पैदावार में कमी आ जाती है।

रोकथाम

  • इस रोग से बचने के लिए कार्बोफ्यूरान या क्लोरपायरीफास की उचित मात्रा को पौधों में छिड़कना चाहिए।
  • इस रोग से बचने के लिए खेत की जुताई करने के पश्चात खेत को 2 से 3 दिनों तक अच्छी धूप लगने के लिए छोड़ दें और साथ ही फसल की बुआई के लिए फसल चक्र का उपयोग करें।

सफ़ेद विलगन

लक्षणयह रोग मटर की फसल में ऊपरी भाग पर देखने को मिलता है। इस रोग में फसल के तने एवं पत्तियों पर सफेद रंग के  धब्बे आ जाते हैं और फलियां अंदर से सड़ने लग जाती है।

रोकथाम

  • फसल को इस रोग से बचाने के लिए 3 वर्ष का फसल चक्र अपनाकर मटर की बुआई करनी चाहिए।
  • मटर की जो किस्में ज्यादा रोग ग्रस्त नहीं होती है, ऐसी किस्मों की बुआई करनी चाहिए‌।
  • खड़ी फसल में इस रोग से बचाव के लिए नीम के घोल को या फिर गोमूत्र को माइक्रो एंजाइम में मिलाकर पौधों पर छिड़काव करना चाहिए।

माहू या चेपा

लक्षणयह रोग सामान्यतया मौसम में परिवर्तन के कारण फसल में देखने को मिलता है। इमाहू या चेपा के कीट छोटे आकार के होते हैं। यह कीट पौधों पर समूह में आक्रमण करते हैं।

यह रोग पौधे का रस चुष्कर पौधे पर चिपचिपा पदार्थ को उत्सर्जन करते हैं जिसके कारण पौधे पर फफूंद लग जाती है और पूरा पौधा उसके प्रभाव में आकर सड़ जाता है।

रोकथाम

  • मटर की फसल को इस रोग से बचाने के लिए पौधों पर मोनोक्रोटोफास की मात्रा का छिड़काव करना चाहिए।
  • इसके अलावा नीम के तेल या नीम के आर्क की उचित मात्रा का छिड़काव करें।

 

फली छेदक

लक्षणइस रोग के नाम से ही पता चलता है कि यह रोग मटर की फलियों में छेद कर देता है, यह रोग एक कीट के कारण होता है जो मटर की फलियों में छेद करके अंदर बीज को खा जाती है। जिससे फसल के उत्पादन क्षमता में कमी आती है।

रोकथाम

  • इस रोग से बचाव हेतु जब फसल में फलियां आ जाती है तो फसल के ऊपर कार्बोरिल या फिर मेलाथियान की उचित मात्रा का छिड़काव करना चाहिए
  • प्राकृतिक तरीके से यदि आप इस रोग से छुटकारा पाना चाहते हैं तो आपको नीम के तेल या फिर नीम के आर्क का छिड़काव फसल में करना चाहिए।

इसके अलावा मटर की फसल में ऐसे बहुत सारे रोग हैं जो फसल को बर्बाद कर सकते हैं जैसे कि एन्थ्रेक्नोज, लीफ माइनर, एस्कोकाईटा ब्लाईट, उख्टा या जड़ सडन, रस्ट, पाउडरी मिल्ड्यू, कटवर्म आदि।

यदि आप इन रोगों के उपचार हेतु पोस्ट चाहते हैं। तो हमें कमेंट करके बताइए हम आपके लिए ईन रोगों के उपचार एवं लक्षण के बारे में भी पोस्ट लेकर आएंगे।

कटाई

पहली बात तो यह है कि मटर की कटाई नहीं की जाती इसकी फलियों को तोड़कर बाजार में बेचा जाता है या फिर सुखाकर दाल के लिए तैयार किया जाता है। आमतौर पर यह फसल जल्दी पकने वाली फसलें है और यदि इसे अक्टूबर के दूसरे सप्ताह में बोया जाए तो यह 70 दिनों में पककर तैयार हो जाती है और इसकी पहली तुड़ाई की जाती है। आमतौर पर मटर की फलियां पहली बार तुड़ाई के पश्चात दूसरी बार बस कुछ ही दिनों में तैयार हो जाती है और इससे हम आसानी से चार से पांच तुड़ाई कर सकते हैं।

यदि मटर की खेती बड़े पैमाने पर की जाए तो इसे तोड़ने में अधिक मजदूरों की सहायता लगती है। इसलिए मटर की तुड़ाई करने के लिए मशीनों का उपयोग किया जाता है। जो जड़ से मटर के पौधे को उखाड़कर फलियों को अलग कर देती है। मगर यह सिर्फ एक बार कर सकते हैं। क्योंकि मशीन पूरे पौधे को उखाड़कर फलियां अलग करती है, इसलिए हम फलियों को दूसरी बार नहीं तोड़ सकते हैं।

यदि हम मजदूरों की सहायता से तुड़ाई कराए तो हम चार से पांच बार आसानी से मटर की तुड़ाई कर सकते हैं अर्थात दुगना लाभ प्राप्त कर सकते हैं।

मटर का इतिहास

मटर को भारत इतिहास में बहुत प्राचीन माना जाता है लगभग हजारों साल पहले से ही मटर का उपयोग किया जा रहा है मगर इस बात का कोई प्रमाण नहीं है। मटर के बारे में प्राचीन काल की पुस्तकों में इसका केंद्र अलग-अलग बताया गया है।

  • “वेजिटेबल” पुस्तक के प्रसिद्ध लेखक एवं भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के प्रसिद्ध वैज्ञानिक डॉ. बिश्वजीत चौधरी ने मटर की उत्पत्ति के बारे में बताया है कि मटर पाषाण युग में जन्मी खेती है एवं उन्होंने इसका मूल केंद्र इथोपिया को बताया है।
  • अन्य रिपोटो के मुताबिक भी यही माना जाता है कि मटर की उत्पत्ति दक्षिणी पश्चिमी एशिया, उत्तरी पश्चिमी भारत तथा पूर्वी सोवियत रूस के निकटवर्ती क्षेत्रों में हुई थी।

इसके अलावा अमेरिका देश की ओरेगन स्टेट यूनिवर्सिटी की वनस्पति वैज्ञानिक एवं प्रोफेसर सुषमा नैथानी का यह भी कहना है कि मटर की उत्पत्ति भूमध्य सागर के आसपास हुई थी, जिसमें सीरिया, तुर्की, इजरायल, इराक, जॉर्डन, ग्रीस आदि देश सम्मिलित हैं। बताया गया है कि 10000 साल पहले मटर की खेती मध्य पूर्वी एशिया में की गई थी। और करिब 4000 साल पहले मटर की खेती पूरे यूरोप समेत संपूर्ण भारत में फैल गई थी। उसके बाद चीन में इसकी खेती की गई थी। इसके अलावा विशेष बात यह है कि 2000 इसा पूर्व हड़प्पा संस्कृति में मटर की खेती से संबंधित जानकारी प्राप्त हुई है। वैज्ञानिकों का कहना है कि उस समय हड़प्पा सभ्यता गेहूं, जौ, मटर, बाजरा, कपास, सरसों, राई, तिल आदि की खेती करती थी इसके अलावा भी मटर के कई सारे केंद्र बताए जा रहे हैं, परंतु यह बात तो बिल्कुल सत्य है कि मटर की खेती हजारों साल पहले से ही की जा रही है अर्थात मटर काफी प्राचीन समय की खेती है।।

मटर की खेती कौन से राज्य में होती है?

दोस्तों वैसे तो मटर की खेती भारत के सभी राज्यों में की जाती है, परंतु निम्न राज्य ऐसे हैं जिनमें भारत के मटर उत्पादन का कुल 85% हिस्सा है यह राज्य निम्न है।

  • उत्तर प्रदेश
  • मध्य प्रदेश
  • पंजाब
  • झारखंड
  • हिमाचल प्रदेश आदि

यह सभी राज्य भारत में कुल मटर उत्पादन का 85%  उत्पादन करते हैं।  भारत में सबसे ज्यादा मटर उत्पादक देश उत्तर प्रदेश है उत्तर प्रदेश भारत का लगभग 53% मटर उत्पादक देश है। उत्तर प्रदेश राज्य में 4.34 लाख हेक्टेयर भूमि में मटर का उत्पादन किया जाता है। एवं मध्य प्रदेश मटर उत्पादन में दूसरे नंबर पर आता है‌. मध्यप्रदेश, देश के मटर के कुल उत्पादन का 15% उत्पादन करता है।

भारत में मटर की कितनी पैदावार होती है?

भारत देश में मटर की खेती 7.9 लाख हेक्टर भूमि में की जाती है। जो लगभग 9 लाख टन मटर का उत्पादन करती है।

विश्व भर में हरी मटर उत्पादन करने वाला सबसे बड़ा देश चीन है। वहीं भारत इसमें दूसरे नंबर पर है तथा ब्रिटेन तीसरे नंबर पर।

Conclusion

 

उम्मीद करता हूं दोस्तों आपको हमारी पोस्ट पसंद आई होगी, आज की इस पोस्ट में हमने मटर के इतिहास और मटर की खेती किस प्रकार की जाती है?, इसके बारे में संपूर्ण जानकारी प्राप्त की है। यदि इस पोस्ट से संबंधित आपको कोई समस्या हो तो आप हमें कमेंट करके बता सकते हैं एवं यदि आपको मटर की खेती के बारे में और कोई अन्य जानकारी चाहिए तो आप हमें कमेंट कीजिए हम आपके लिए उस टॉपिक पर पोस्ट लेकर आएंगे आज के लिए बस इतना ही मिलते हैं अगली पोस्ट में तब तक के लिए धन्यवाद

Vinod Yadav

विनोद यादव हरियाणा के रहने वाले है और इनको करीब 10 साल का न्यूज़ लेखन का अनुभव है। इन्होने लगभग सभी विषयों को कवर किया है लेकिन खेती और बिज़नेस में इनकी काफी अच्छी पकड़ है। मौजूदा समय में किसान योजना वेबसाइट के लिए अपने अनुभव को शेयर करते है। विनोद यादव से सम्पर्क करने के लिए आप कांटेक्ट वाले पेज का इस्तेमाल कर सकते है।

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